दृष्टा

 तुम ब्रह्म स्वरूप हो, 

तुम केवल दृष्टा बनो।

इंद्रियों के विषय में

आसक्ति ना रखते हुए

एकत्व भाव से भोग करो।

इसके लिए प्रयासरत रहना ही

ध्यान है,योग है, साधना है, तप है।

तुम ब्रह्म स्वरूप हो!

जीवन में जो घट रहा है,

और जो परिवर्तन हो रहा है,

उसका तुम केवल दृष्टा बनो।

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